इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) ने जीनोम-संपादित (Genome-Edited) चावल की किस्में विकसित की है। ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है। इस उपलब्धि की चर्चा इस समय जोरों पर है और इसे भारतीय कृषि की आधुनिकरण की दिशा में बढ़ाया गया एक बड़ा कदम माना जा रहा है। बता दे कि ICAR ने जीनोम-संपादित चावल की दो किस्में DRC Rice 100 (कमला) और Pusa DST Rice 1 को आधिकारिक रूप से राजधानी दिल्ली में लॉन्च किया।
इस मुद्दे पर इंडियन राइस एक्सपोर्ट फेडरेशन (IREF) के वाइस प्रेसिडेंट “ देव गर्ग ” ने CNBC आवाज से बातचीत की और ICAR द्वारा लॉन्च की गई जीनोम-संपादित चावल की किस्मों पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने इन चावलों की खासियत बताते हुए कहा कि “ चावल की ये दोनो किस्में राइस प्रोडक्शन में बढ़ोतरी करेंगी। चावल की ये दो नई किस्में फसल को खराब करने वाले विषाणुओं या अन्य कारकों से लड़ने में ज्यादा सक्ष्म है। भारत में धान की खेती के दौरान द्वारा प्रयोग किए गए कीटनाशकों के कारण हमारे चावल में कई ऐसे पैरामीटर आ जाते हैं जो हमारे चावल को यूरोप या यूएस मार्केट में एक्सपोर्ट के लिए असक्ष्म बना देते हैं। ऐसे में अब किसानों को चावल की इन किस्मों की खेती के दौरान कम कीटनाशकों का प्रयोग करना पड़ेगा जिससे चावल की ये किस्में भारत सहित दुनिया के अन्य बाजारों में ज्यादा मार्केटबल होगी ”।
उन्होंने इसके साथ ही राइस इंडस्ट्री के मूल मुद्दों ( Fundamantal Issues) की ओर भी इशारा किया और कहा कि “चावल की इन दो नई किस्मों से प्रोडक्शन तो बढ़ेगा पर इससे चावल उद्योग के मूल मुद्दों का हल नहीं निकलेगा। राइस की ये वैरायटी चावल के सरप्लस को बढ़ाने में मदद जरूर करेगी पर इससे एक्सपोर्ट के सरप्लस में बढ़ोतरी देखने को नहीं मिलेगी ”। उन्होंने कहा कि “ पिछले दो से तीन वर्षो में लगाए गए कुछ रोक के कारण हमारा और दुनिया के बाजारों ओर खरीददारों से जो संपर्क है वो कमजोर हुआ है जिसका फायदा आज वियतनाम और पाकिस्तान जैसे देश उठा रहे हैं ”।
आपको बता दे कि इस दौरान उन्होंने इंडियन राइस एक्सपोर्ट फेडरेशन (IREF) द्वारा आयोजित होने वाले “ भारत इंटरनेशनल राइस कॉन्फ्रेंस (BRIC)” के बारे बताया और कहा कि “हमारे द्वारा आयोजित किए जाने वाले इस राइस कॉन्फ्रैंस में लगभग 1 हजार फॉरन डेलिगेट्स और 5 हजार घरेलू एक्सपोर्टस हिस्सा लेने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत में आयोजित होने इस तरह की ये पहली कॉन्फ्रेंस होगी”।
इस कॉन्फ्रेंस की वर्तमान समय में जरूरत का जिक्र करते हुए IREF के वीपी ने कहा कि “ इससे पिछले तीन से पांच वर्षों में जो चावल के हवाले से विदेशी बाजारों और विदेशी खरीददारों से जो हमारे संपर्क में जो थोड़ी गिरावट देखने को मिली है उसे वापस लाने में मदद मिलेगी ”।
साथ ही इस दौरान उन्होंने चावल निर्यातकों की एक बड़ी समस्या पर भी बात की जिसमें उन्होंने बताया कि बंदरगाहों (Ports) पर वेयरहाउस तो बने हुए है पर चावल स्टॉक के लिए स्पेस उपलब्ध नहीं हो पाता हैं। ऐसे में सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंन भारत में एग्री इंफ्रास्ट्रक्टर को विकसित करने को समय की मांग बताया और कहा कि इससे एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा और एक्सपोर्टस को आसानी भी होगी”।